"सीमा की दास्तान — एक सवाल, एक सन्नाटा"
वाह… वाह…
चार बच्चों की माँ, एक परदे की औरत,
पाक़ ज़मीं से चलती है –
सऊदी, नेपाल के रास्तों से गुज़रती हुई,
पहुंचती है भारत की धरती पर…
कहती है — “मैं प्रेम में आई हूँ।”
पर यह प्रेम कितना सादा है, कितना गहरा है,
कितना सच्चा — और कितना रहस्यमय?
ये सवाल हर दिल में गूंजता है।
मीडिया के कैमेरे चमकते हैं,
कहीं तालियाँ बजती हैं, कहीं ठहाके गूंजते हैं।
कोई इसे “वीर-ज़ारा” का नया जन्म कहता है,
तो कोई इसे “सीमा पार की चाल” बताता है।
पर सच्चाई, अब भी धुंध में खोई है।
सवाल उठते हैं —
कैसे एक साधारण सी महिला,
चार नन्हें बच्चों के संग,
कई सरहदों को चकमा देकर,
इतनी दूर तक पहुँच गई?
क्या यह केवल इश्क़ था,
या इसमें कोई इरादा छिपा था?
कौन है जो उसके पीछे खड़ा है —
कौन है जो इस कहानी को लिख रहा है?
मीडिया दिन-रात माइक थामे उसके पीछे भागती है,
पर सवाल तो यह भी है —
हमारे सिपाही, हमारे प्रहरी, हमारे रहस्य जानने वाले कहां हैं?
कहाँ है वो नज़र जो देश की सीमाओं पर पहरा देती है?
सीमा कहती है — “मैं तो पाँचवीं पास हूँ।”
पर उसकी चाल, उसका आत्मविश्वास, उसकी पहुँच —
क्या यह सचमुच एक सामान्य औरत की कहानी है?
वो मुस्कुराती है,
‘नमस्ते’ करती है,
साड़ी पहनती है, सिंदूर लगाती है —
और भारतमाता की बेटी बन जाती है।
पर मन फिर भी सवाल करता है —
क्या यह रूप, यह रंग, यह अंदाज़
इतनी सहजता से बदल सकता है?
उसकी भाषा में उर्दू की मिठास नहीं,
हिंदी का ठहराव ज़्यादा है —
क्या यह भी किसी पटकथा का हिस्सा है?
फिर भी —
अगर यह सचमुच प्रेम की कहानी है,
तो कौन हमसे प्रेम पर सवाल पूछने वाला है?
क्योंकि प्यार सरहदों का मोहताज नहीं होता,
पर देश की सुरक्षा, भरोसे की दीवारों पर टिकी होती है।
इसलिए, यह सिर्फ़ सीमा की बात नहीं —
यह सवाल है हमारी सीमा सुरक्षा,
हमारे विवेक, हमारी सतर्कता और हमारे विश्वास का।
जो लोग आज उत्सव मना रहे हैं,
कि एक धर्म बदला, पाँच बच्चे नए बने —
वो ज़रा सोचें —
धर्म का नहीं, दिलों का बदलना ही असली जीत होती है।
नागरिकता रेवड़ी नहीं, जिम्मेदारी है।
हम सबको यही सोचना होगा —
अगर यह प्रेम है, तो उसे कानून का साथ मिले,
अगर यह छल है, तो सच्चाई सामने आए।
क्योंकि भारत की मिट्टी सच्चाई और शांति की साक्षी है,
और इस पवित्र भूमि पर झूठ की छाया नहीं टिकती।

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